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14 फ़रवरी 2024

15 बेहतरीन शेर - 9 !!!

1. कुछ खटकता तो है पहलू में मिरे रह रह कर, अब ख़ुदा जाने तिरी याद है या दिल मेरा - जिगर मुरादाबादी

2. जो अक़्ल के मारे थे, अपने भी काम ना आये , दीवानों ने दुनिया की तक़दीर बदल डाली.

3. मरीज़े इश्क़ पर रहमत ख़ुदा की, दर्द बढ़ता गया यूँ यूँ दवा की - मीर तक़ी मीर

4. कोई नयी ज़मीं हो, नया आसमाँ भी हो, ए दिल अब उसके पास चले, वो जहाँ भी हो! - फ़िराक़ गोरखपुरी

5. मदहोश ही रहा मैं जहाने ख़राब में, गूँथी गई थी क्या मेरी मिट्टी शराब में - मुज़तर ख़ैराबादी

6. गिरज़ा में, मन्दिरों में, अज़ानों में बँट गया, एक ही मूल का इन्सान, कई नामों में बँट गया । - निदा फ़ाज़ली

7. उग रहा है दर-ओ-दीवार से सब्ज़ा 'ग़ालिब', हम बयाबाँ में हैं और घर में बहार आई है - मिर्ज़ा ग़ालिब

8. तिरी मौजूदगी में तेरी दुनिया कौन देखेगा, तुझे मेले में सब देखेंगे मेला कौन देखेगा -नज़ीर बनारसी

9. गुल खिलेंगे नए फूलों की नुमाइश होगी, उस सितमगर की मुहब्बत में भी साज़िश होगी -ज़हीर रहमती

10. बच्चों के छोटे हाथों को चांद सितारे छूने दोचार किताबें पढ़ कर यह भी हम जैसे हो जाएंगे ~ निदा फ़ाज़ली

11- उनका जो फ़र्ज़ है वो अहल-ए-सियासत जानें, मेरा पैग़ाम मोहब्बत है जहाँ तक पहुँचे - जिगर मुरादाबादी

12- गुलशन-परस्त हूँ मुझे गुल ही नहीं अज़ीज़, काँटों से भी निभा किए जा रहा हूँ मैं - जिगर मुरादाबादी

13- इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना, दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना - ग़ालिब

14- जब भी मिलती है मुझे अजनबी लगती क्यूँ है, ज़िंदगी रोज़ नए रंग बदलती क्यूँ है - शहरयार

15- दुनिया जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है, मिल जाए तो मिट्टी है खो जाए तो सोना है -निदा फ़ाज़ली

9 अक्तूबर 2023

ख़तरे में इस्लाम नहीं

ख़तरा है ज़रदारों को, गिरती हुई दीवारों को

सदियों के बीमारों को, ख़तरे में इस्लाम नहीं

सारी ज़मीं को घेरे हुए हैं आख़िर चंद घराने क्यों

नाम नबी का लेने वाले उल्फ़त से बेगाने क्यों

ख़तरा है खूंखारों को, रंग बिरंगी कारों को

अमरीका के प्यारों को, ख़तरे में इस्लाम नहीं

आज हमारे नारों से लज़ी है बया ऐवानों में

बिक न सकेंगे हसरतों अमां ऊंची सजी दुकानों में

ख़तरा है बटमारों को, मग़रिब के बाज़ारों को

चोरों को मक्कारों को, ख़तरे में इस्लाम नहीं

अम्न का परचम लेकर उठो, हर इंसां से प्यार करो

अपना तो मंशूर है ‘जालिब’, सारे जहां से प्यार करो

ख़तरा है दरबारों को, शाहों के ग़मख़ारों को

नव्वाबों ग़द्दारों को, ख़तरे में इस्लाम नहीं

27 सितंबर 2023

15 बेहतरीन शेर - 8 !!!

1. वक़्त करता है परवरिश बरसों, हादिसा एक दम नहीं होता --- क़ाबिल अजमेरी

2. दिल था एक शोला मगर बीत गए वो दिन "क़तील", अब कुरेदो न इसे, राख में रखा क्या है ! क़तील शिफ़ाई

3. हद से बढ़े जो इल्म, तो है ज़हर दोस्तों, सब कुछ जो जानते हैं, वो कुछ जानते नहीं...! खुमार बाराबंकवी

4. इस सिरे से उस सिरे तक सब शरीके-जुर्म हैं, आदमी या तो ज़मानत पर रिहा है, या फ़रार...!!! - दुष्यंत कुमार

5. लहरा रही है बर्फ़ की चादर हटा के घास, सूरज की शह पे तिनके भी बेबाक हो गए...! - परवीन शाकिर

7. बाल अपने बढ़ाते हैं किस वास्ते दीवाने, क्या शहर-ए-मुहब्बत में हज्जाम नहीं होता... - ग़ुलाम हमदानी 'मुसहफ़ी'

8. गुलशन-ए-फ़िरदौस पर क्या नाज़ है रिज़वां तुझे , पूछ उस के दिल से जो है रुत्बा-दान-ए-लखनऊ ...! - नज़्म तबातबाई

9. ज़ुल्म की टहनी कभी फलती नहीं, नाव काग़ज़ की सदा चलती नहीं - इस्माईल मेरठी

10. ख़याल ए ज़ुल्फ़ में हर दम नसीर पीटा कर, गया है साँप निकल अब लकीर पीटा कर - शाह नसीर

11. 'जुस्तुजू जिसकी थी उसको तो न पाया हमने, इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हमने' ~ शहरयार

12. वो मेरे घर नहीं आता, मैं उसके घर नहीं जाता, मगर इन एहतियातों से ताल्लुक़ मर नहीं जाता...!!! - वसीम बरेलवी

13. रात ही रात में तमाम तय हुए उम्र के मक़ाम, हो गई ज़िंदगी की शाम अब मैं सहर को क्या करूं... - हफ़ीज़ जालंधरी

14. 'ख़ुद से मिल जाते तो चाहत का भरम रह जाता क्या मिले आप जो लोगों के मिलाने से मिले' ~ कैफ़ भोपाली

15. हमको मिटा सके ये ज़माने में दम नहीं हम से ज़माना ख़ुद है, ज़माने से हम नहीं - जिगर मुरादाबादी

13 जून 2023

15 बेहतरीन शेर - 7 !!!

1. जनाबे शेख़ का फ़लसफ़ा, है अजीब सारे जहान से, जो वहाँ पियो तो हलाल है, जो यहाँ पियो तो हराम है - जिगर मुरादाबादी

2. दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे. जब कभी हम दोस्त हो जाएँ तो शर्मिंदा न हों ... बशीर बद्र

3. देख रफ़्तार-ए-इंक़लाब 'फ़िराक़', कितनी आहिस्ता और कितनी तेज़ - फ़िराक़ गोरखपुरी

4. "पलकों पे कच्ची नींदों का रस फैलता हो जब, ऐसे में आँख धूप के रुख़ कैसे खोलिए" -परवीन शाकिर

5. इल्म में झिंगुर से बढ़ कर कामरां कोई नहीं, चाट जाता है किताबें, इम्तिहां कोई नहीं...!!! - ज़रीफ़ लखनवी

6. वक़्त करता है परवरिश बरसों, हादिसा एक दम नहीं होता - क़ाबिल अजमेरी

7. हम ने माना कि तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन , ख़ाक हो जाएँगे हम तुम को ख़बर होते तक --- मिर्ज़ा ग़ालिब

8. जनाज़ा रोक कर मेरा वो इस अंदाज़ से बोले, गली हम ने कही थी तुम तो दुनिया छोड़े जाते हो ~ सफ़ी लखनवी

9. क़सम जनाज़े पे आने की मेरे खाते हैं ग़ालिब, हमेशा खाते थे जो मेरी जान की क़सम आगे - ग़ालिब

10. वो गलियाँ याद आती हैं जवानी जिन में खोई बड़ी हसरत से लब पर ज़िक्र ए गोरखपुर आता है - रियाज़ ख़ैराबादी

11. बस कि दुश्वार है हर काम का आसां होना. आदमी को भी मय्यसर नहीं इंसां होना - ग़ालिब.

12. पेट के तक़ाज़ों ने कर दिया है नाबीना, दाना याद रहता है, दाम भूल जाता हूं ...!!! - क़तील शिफ़ाई

13. कोई जन्नत का तालिब है, कोई ग़म से परेशां है, ज़रूरत करवाती है सजदे, वर्ना इबादत यहां कौन करता है - महशर आबिदी

14. तैयार थे नमाज़ पे, हम सुन के ज़िक्र-ए-हूर, जलवा बुतों का देख के नीयत बदल गई ! - अकबर इलाहाबादी

15. “मैं भी बहुत अजीब हूँ इतना अजीब हूँ कि बस, ख़ुद को तबाह कर लिया और मलाल भी नहीं” - जौन एलिया

14 नवंबर 2022

यह बच्चा किसका बच्चा है

यह बच्चा कैसा बच्चा है

यह बच्चा काला-काला-सा
यह काला-सा, मटियाला-सा
यह बच्चा भूखा-भूखा-सा
यह बच्चा सूखा-सूखा-सा
यह बच्चा किसका बच्चा है
यह बच्चा कैसा बच्चा है
जो रेत पर तन्हा बैठा है
ना इसके पेट में रोटी है
ना इसके तन पर कपड़ा है
ना इसके सर पर टोपी है
ना इसके पैर में जूता है
ना इसके पास खिलौना है
कोई भालू है कोई घोड़ा है
ना इसका जी बहलाने को
कोई लोरी है कोई झूला है
ना इसकी जेब में धेला है
ना इसके हाथ में पैसा है
ना इसके अम्मी-अब्बू हैं
ना इसकी आपा-खाला है
यह सारे जग में तन्हा है
यह बच्चा कैसा बच्चा है

[2]

यह सहरा कैसा सहरा है
ना इस सहरा में बादल है
ना इस सहरा में बरखा है
ना इस सहरा में बाली है
ना इस सहरा में खोशा (अनाज की बाली) है
ना इस सहरा में सब्ज़ा है
ना इस सहरा में साया है

यह सहरा भूख का सहरा है
यह सहरा मौत का सहरा है

[3]

यह बच्चा कैसे बैठा है
यह बच्चा कब से बैठा है
यह बच्चा क्या कुछ पूछता है
यह बच्चा क्या कुछ कहता है
यह दुनिया कैसी दुनिया है
यह दुनिया किसकी दुनिया है

[4]

इस दुनिया के कुछ टुकड़ों में
कहीं फूल खिले कहीं सब्ज़ा है
कहीं बादल घिर-घिर आते हैं
कहीं चश्मा है कहीं दरिया है
कहीं ऊंचे महल अटरिया हैं
कहीं महफ़िल है, कहीं मेला है
कहीं कपड़ों के बाज़ार सजे
यह रेशम है, यह दीबा (बारीक रेशमी कपड़ा) है
कहीं गल्ले के अम्बार लगे
सब गेहूं धान मुहय्या है
कहीं दौलत के संदूक़ भरे
हां तांबा, सोना, रूपा है
तुम जो मांगो सो हाज़िर है
तुम जो चाहो सो मिलता है
इस भूख के दुख की दुनिया में
यह कैसा सुख का सपना है?
वो किस धरती के टुकड़े हैं?
यह किस दुनिया का हिस्सा है?

[5]

हम जिस आदम के बेटे हैं
यह उस आदम का बेटा है
यह आदम एक ही आदम है
वह गोरा है या काला है
यह धरती एक ही धरती है
यह दुनिया एक ही दुनिया है
सब इक दाता के बंदे हैं
सब बंदों का इक दाता है
कुछ पूरब-पच्छिम फ़र्क़ नहीं
इस धरती पर हक़ सबका है

[6]

यह तन्हा बच्चा बेचारा
यह बच्चा जो यहां बैठा है
इस बच्चे की कहीं भूख मिटे
(क्या मुश्किल है, हो सकता है)
इस बच्चे को कहीं दूध मिले
(हां दूध यहां बहुतेरा है)
इस बच्चे का कोई तन ढांके
(क्या कपड़ों का यहां तोड़ा (अभाव) है?)
इस बच्चे को कोई गोद में ले
(इंसान जो अब तक ज़िंदा है)
फिर देखिए कैसा बच्चा है
यह कितना प्यारा बच्चा है

[7]

इस जग में सब कुछ रब का है
जो रब का है, वह सबका है
सब अपने हैं कोई ग़ैर नहीं
हर चीज़ में सबका साझा है
जो बढ़ता है, जो उगता है
वह दाना है, या मेवा है
जो कपड़ा है, जो कम्बल है
जो चांदी है, जो सोना है
वह सारा है इस बच्चे का
जो तेरा है, जो मेरा है

यह बच्चा किसका बच्चा है?
यह बच्चा सबका बच्चा है

--- इब्ने इंशा

4 अगस्त 2022

बीस घराने

बीस घराने हैं आबाद
बीस घराने हैं आबाद
और करोड़ों हैं नाशाद
सद्र अय्यूब ज़िन्दाबाद

आज भी हम पर जारी है
काली सदियों की बेदाद
सद्र अय्यूब ज़िन्दाबाद

बीस रूपय्या मन आटा
इस पर भी है सन्नाटा
गौहर, सहगल, आदमजी
बने हैं बिरला और टाटा
मुल्क के दुश्मन कहलाते हैं
जब हम करते हैं फ़रियाद
सद्र अय्यूब ज़िन्दाबाद

लाइसेंसों का मौसम है
कंवेंशन को क्या ग़म है
आज हुकूमत के दर पर
हर शाही का सर ख़म है
दर्से ख़ुदी देने वालों को
भूल गई इक़बाल की याद
सद्र अय्यूब ज़िन्दाबाद

आज हुई गुंडागर्दी
चुप हैं सिपाही बावर्दी
शम्मे नवाये अहले सुख़न
काले बाग़ ने गुल कर दी
अहले क़फ़स की कैद बढ़ाकर
कम कर ली अपनी मीयाद
सद्र अय्यूब ज़िन्दाबाद

ये मुश्ताके इसतम्बूल
क्या खोलूं मैं इनका पोल
बजता रहेगा महलों में
कब तक ये बेहंगम ढोल
सारे अरब नाराज़ हुए हैं
सीटो और सेंटों हैं शाद
सद्र अय्यूब ज़िन्दाबाद

गली गली में जंग हुई
ख़िल्क़त देख के दंग हुई
अहले नज़र की हर बस्ती
जेहल के हाथों तंग हुई
वो दस्तूर हमें बख़्शा है
नफ़रत है जिसकी बुनियाद
सद्र अय्यूब ज़िन्दाबाद

- हबीब जालिब

20 जून 2022

15 बेहतरीन शेर - 5 !!!

1. आपके तग़ाफ़ुल का सिलसिला पुराना है उस तरफ़ निगाहें हैं इस तरफ़ निशाना है - हिना तैमूरी

2. तुम्हारे हिज्र में मरना था कौन सा मुश्किल, तुम्हारे हिज्र में ज़िंदा हैं ये कमाल किया - आरिफ़ इमाम

3. मौत के डर से नाहक़ परेशान हैं आप ज़िंदा कहाँ हैं जो मर जायेंगे ! - अंसार कम्बरी

4. इनकार की सी लज़्ज़त इक़रार में कहां, होता है इश्क़ ग़ालिब, उनकी नहीं-नहीं से - मीर तक़ी मीर

5. रोज़ वो ख़्वाब में आते हैं गले मिलने को, मैं जो सोता हूं तो जाग उठती है क़िस्मत मेरी - जलील मानिकपुरी

6. दुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दिया, तुझसे भी दिलफरेब हैं ग़म रोज़गार के - फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

7. 'रंज से ख़ूगर हुआ इंसाँ तो मिट जाता है रंज, मुश्किलें मुझ पर पड़ीं इतनी कि आसाँ हो गईं - मिर्ज़ा ग़ालिब

8. दुनिया ने किस का राह-ए-फ़ना में दिया है साथ तुम भी चले चलो यूँही जब तक चली चले - शेख़ इब्राहीम ज़ौक़

9. अब और इस के सिवा चाहते हो क्या 'मुल्ला', ये कम है उस ने तुम्हें मुस्कुरा के देख लिया - आनंद नारायण मुल्ला

10. मैं बोलता हूँ तो इल्ज़ाम है बग़ावत का, मैं चुप रहूँ तो बड़ी बेबसी सी होती है - बशीर बद्र

11. घूम रहा था एक शख़्स रात के ख़ारज़ार में, उस का लहू भी मर गया सुब्ह के इंतिज़ार में. - आदिल मंसूरी

12. 'हम परवरिश-ए-लौह-ओ-क़लम करते रहेंगे, जो दिल पे गुज़रती है रक़म करते रहेंगे' - फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

13. जो इक ख़ुदा नहीं मिलता तो इतना मातम क्यों, यहां तो कोई मेरा हम-ज़बां नहीं मिलता ! - कैफ़ी आज़मी

14. अब हवाएँ ही करेंगी रौशनी का फ़ैसला, जिस दिए में जान होगी, वो दिया रह जाएगा - महशर बदायुनी

15. बाग़ में जाने के आदाब हुआ करते हैं, किसी तितली को न फूलों से उड़ाया जाए - निदा फ़ाज़ली

25 दिसंबर 2021

15 बेहतरीन शेर - 4 !!!

1. 'रोने वालों से कहो उनका भी रोना रो लें, जिनको मजबूरी-ए-हालात ने रोने न दिया' - सुदर्शन फ़ाकिर

2. मिटा दे अपनी हस्ती को, अगर कुछ मर्तबा चाहे | कि दाना खाक में मिलकर गुले गुलज़ार होता है - अल्लामा इक़बाल

3. एक आस्तीं चढ़ाने की आदत को छोड़कर, हाफ़ी तुम आदमी तो बहुत शानदार हो -तहज़ीब हाफ़ी

4. ये सोचना ग़लत है कि तुम पर नज़र नहीं, मसरूफ़ हम बहुत हैं मगर बे-ख़बर नहीं - आलोक श्रीवास्तव

5. न जाने कौन सा आसेब दिल में बसता है, कि जो भी ठहरा वो आख़िर मकान छोड़ गया -परवीन शाकिर

6. जीने का कुछ उसूल न मरने का ढंग है हर छोटी-छोटी बात पे आपस में जंग है - रऊफ़ रहीम

7. बे-मक़्सद महफ़िल से बेहतर तन्हाई, बे-मतलब बातों से अच्छी ख़ामोशी - ऐन इरफ़ान

8. कभी मैं अपने हाथों की लकीरों से नहीं उलझा, मुझे मालूम है क़िस्मत का लिखा भी बदलता है - बशीर बद्र

9. मैं पर्बतों से लड़ता रहा और चंद लोग, गीली ज़मीन खोद के फ़रहाद हो गए - राहत इंदौरी

10. सुना ये है, बना करते हैं जोड़े आसमानों में, तो ये समझें कि हर बीवी बला-ए-आसमानी है - अहमद अल्वी

11. जिन्हें ये फ़िक्र नहीं सर रहे रहे न रहे, वो सच ही कहते हैं जब बोलने पे आते हैं - आबिद अदीब

12. इशरत ए क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना, दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना - मिर्ज़ा ग़ालिब

13. बुरा बुरे के अलावा भला भी होता है, हर आदमी में कोई दूसरा भी होता है - अनवर शऊर

14. ऐ सनम वस्ल की तदबीरों से क्या होता है, वही होता है जो मंज़ूर-ए-ख़ुदा होता है - मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

15. गर्मी-ए-हसरत-ए-नाकाम से जल जाते हैं, हम चराग़ों की तरह शाम से जल जाते हैं - क़तील शिफ़ाई

21 दिसंबर 2021

उर्दू का जनाज़ा है ज़रा धूम से निकले


क्यूँ जान-ए-हज़ीं ख़तरा-ए-मौहूम से निकले
क्यूँ नाला-ए-हसरत दिल-ए-मग़्मूम से निकले
आँसू न किसी दीदा-ए-मज़लूम से निकले
कह दो कि न शिकवा लब-ए-मग़्मूम से निकले

उर्दू का जनाज़ा है ज़रा धूम से निकले
उर्दू का ग़म-ए-मर्ग सुबुक भी है गराँ भी
है शामिल-ए-अर्बाब-ए-अ'ज़ा शाह-ए-जहाँ भी
मिटने को है अस्लाफ़ की अज़्मत का निशाँ भी

ये मय्यत-ए-ग़म देहली-ए-मरहूम से निकले
उर्दू का जनाज़ा है ज़रा धूम से निकले
ऐ ताज-महल नक़्श-ब-दीवार हो ग़म से
ऐ क़िला-ए-शाही ये अलम पूछ न हम से

ऐ ख़ाक-ए-अवध फ़ाएदा क्या शरह-ए-सितम से
तहरीक ये मिस्र-ओ-अ'रब-ओ-रोम से निकले
उर्दू का जनाज़ा है ज़रा धूम से निकले
साया हो जब उर्दू के जनाज़े पे 'वली' का

हों 'मीर-तक़ी' साथ तो हमराह हूँ 'सौदा'
दफ़नाएँ उसे 'मुसहफ़ी'-ओ-'नासिख़'-ओ-'इंशा'
ये फ़ाल हर इक दफ़्तर-ए-मंज़ूम से निकले
उर्दू का जनाज़ा है ज़रा धूम से निकले

बद-ज़ौक़ है अहबाब से गो ज़ौक़ हैं रंजूर
उर्दू-ए-मुअ'ल्ला के न मातम से रहें दूर
तल्क़ीन सर-ए-क़ब्र पढ़ें मोमिन-ए-मग़्फ़ूर
फ़रियाद दिल-ए-'ग़ालिब'-ए-मरहूम से निकले

उर्दू का जनाज़ा है ज़रा धूम से निकले
है मर्सियाँ-ख़्वाँ क़ौम हैं उर्दू के बहुत कम
कह दो कि 'अनीस' इस का लिखें मर्सिया-ए-ग़म
जन्नत से 'दबीर' आ के पढ़ें नौहा-ए-मातम

ये चीख़ उठे दिल से न हुल्क़ूम से निकले
उर्दू का जनाज़ा है ज़रा धूम से निकले
इस लाश को चुपके से कोई दफ़न न कर दे
पहले कोई 'सरसय्यद'-ए-आज़म को ख़बर दे

वो मर्द-ए-ख़ुदा हम में नई रूह तो भर दे
वो रूह कि मौजूद न मा'दूम से निकले
उर्दू का जनाज़ा है ज़रा धूम से निकले
उर्दू के जनाज़े की ये सज-धज हो निराली

सफ़-बस्ता हों मरहूमा के सब वारिस-ओ-वाली
'आज़ाद'-ओ-'नज़ीर'-ओ-'शरर'-ओ-'शिबली'-ओ-'हाली'
फ़रियाद ये सब के दिल-ए-मग़्मूम से निकले
उर्दू का जनाज़ा है ज़रा धूम से निकले

16 सितंबर 2021

15 बेहतरीन शेर - 3 !!!

1. मुझ को थकने नहीं देता ये ज़रूरत का पहाड़, मेरे बच्चे मुझे बूढ़ा नहीं होने देते - मेराज फ़ैज़ाबादी

2. लड़कियों के दुःख अजब होते हैं सुख उससे अजीब, हँस रहीं हैं और काजल भीगता है साथ साथ - परवीन शाकिर

3. बुलंदी देर तक किस शख़्स के हिस्से में रहती है, बहुत ऊँची इमारत हर घड़ी खतरे में रहती है -मुनव्वर राणा

4. उसी का शहर, वही मुद्दई वही मुंसिफ़ हमें यहीं था हमारा क़ुसूर निकलेगा -अमीर कजलबाश

5. कश्ती-ए-मय को हुक्म-ए-रवानी भी भेज दे, जब आग भेजी है तो पानी भी भेज दे - जोश मलीहाबादी

6. सबकी पगड़ी को हवाओं उछाला जाए, सोचता हूँ कोई अख़बार निकाला जाए - राहत इंदौरी

7. तुझको मस्जिद मुझको मैखाना वायज़! अपनी अपनी क़िस्मत है - मीर तक़ी मीर

8. तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे, मैं एक शाम चुरा लूँ अगर बुरा न लगे - क़ैसर-उल जाफ़री

9. देवताओं का ख़ुदा से होगा काम, आदमी को आदमी दरकार है - फ़िराक़ गोरखपुरी

10. आग थे इब्तिदा-ए-इश्क़ में हम, अब जो हैं ख़ाक इंतिहा है ये ~मीर तक़ी मीर

11. जिन पत्थरों को हमनें अता की थी धड़कनें, वो बोलने लगे तो हमीं पर बरस पड़े - अज्ञात

12. वहाँ से है मेरी हिम्मत की इब्तिदा वल्लाह जो इंतिहा है तेरे सब्र आज़माने की ~ जोश मलीहाबादी

13. पड़ जाएं फफोले अभी 'अकबर' के बदन पर पढ़ कर जो कोई फूँक दे अप्रैल, मई, जून - अकबर इलाहाबादी

14. 'बेहतर तो है यही कि न दुनिया से दिल लगे, पर क्या करें जो काम न बे-दिल्लगी चले' - शेख़ इब्राहीम ज़ौक़

15. 'चाहता था बहुत-सी बातों को, मगर अफ़्सोस अब वो जी ही नहीं' - अकबर इलाहाबादी

4 अगस्त 2020

15 बेहतरीन शेर - 2 !!!

1. 'सुख के लम्हें तक पहुँचते पहुँचते हम उन लोगों से जुदा हो जाते हैं, जिनके साथ हमनें दुख झेलकर सुख का स्वप्न देखा था।' ~ निर्मल वर्मा 

2. सब तिरे सिवा काफ़िर आख़िर इस का मतलब क्या, सर फिरा दे इंसाँ का ऐसा ख़ब्त-ए-मज़हब क्या ~ यगाना चंगेज़ी 

3. कशिश-ए-लखनऊ अरे तौबा, फिर वही हम वही अमीनाबाद ~ यगाना चंगेज़ी 
 
4. इंशाजी उठो अब कूच करो, इस शहर में दिल को लगाना क्या वहशी को सुकूं से क्या मतलब, जोगी का शहर में ठिकाना क्या ~ इब्ने इंशा

5. जितने हरामख़ोर थे कुरबो-जवार में, परधान बन के आ गये अगली कतार में ~ अदम गोंडवी

6. ख़बर सुन कर मेरे मरने की वो बोले रक़ीबों से, ख़ुदा बख़्शे बहुत सी ख़ूबियाँ थीं मरने वाले में ~ दाग़ देहलवी

7. कह रहा है शोर-ए-दरिया से समुंदर का सुकूत, जिस का जितना ज़र्फ़ है उतना ही वो ख़ामोश है ~ नातिक़ लखनवी

8. तेरे घर तक आ चुकी है दूर के जंगल की आग, अब तिरा इस आग से डरना भी क्या लड़ना भी क्या ~ वज़ीर आग़ा

9. बारिश का बदन था उस का हँसना, ग़ुंचे का ख़िसाल उस का हक़ था ~ किश्वर नाहिद

10. शाएर-ए-फ़ितरत हूं जब भी फ़िक्र फ़रमाता हूं मैं, रूह बन कर ज़र्रे ज़र्रे में समा जाता हूं मैं
मेरी हिम्मत देखना मेरी तबीअत देखना, जो सुलझ जाती है गुत्थी फिर से उलझाता हूं मैं ~ जिगर मुरादाबादी 

11. क्या हुस्न ने समझा है क्या इश्क़ ने जाना है हम ख़ाक-नशीनों की ठोकर में ज़माना है ~ जिगर मुरादाबादी

12. उस से बढ़ कर दोस्त कोई दूसरा होता नहीं, सब जुदा हो जाएँ लेकिन ग़म जुदा होता नहीं ~ जिगर मुरादाबादी 

13. रिंद जो मुझको समझते हैं उन्हे होश नहीं, मैक़दासाज़ हूँ मै मैक़दाबरदोश नहीं ~ जिगर मुरादाबादी 

14. जो हमपे गुज़री सो गुज़री मगर शब-ए-हिज्राँ हमारे अश्क तेरे आक़बत सँवार चले - फैज़

15. ये इल्म का सौदा ये रिसाले ये किताबें, इक शख़्स की यादों को भुलाने के लिए हैं --जाँ निसार अख़्तर

15 मई 2020

मैं भी काफ़िर, तू भी क़ाफ़िर

मैं भी काफ़िर, तू भी क़ाफ़िर
मैं भी काफ़िर, तू भी क़ाफ़िर
फूलों की खुशबू भी काफ़िर
शब्दों का जादू भी काफ़िर

यह भी काफिर, वह भी काफिर
फ़ैज़ भी और मंटो भी काफ़िर
नूरजहां का गाना काफिर
मैकडोनैल्ड का खाना काफिर

बर्गर काफिर, कोक भी काफ़िर
हंसी गुनाह, जोक भी काफ़िर
तबला काफ़िर, ढोल भी काफ़िर
प्यार भरे दो बोल भी काफ़िर

सुर भी काफिर, ताल भी काफ़िर
भांगरा, नाच, धमाल भी काफ़िर
दादरा, ठुमरी, भैरवी काफ़िर
काफी और खयाल भी काफ़िर

वारिस शाह की हीर भी काफ़िर
चाहत की जंजीर भी काफ़िर
जिंदा-मुर्दा पीर भी काफ़िर
भेंट नियाज़ की खीर भी काफ़िर

बेटे का बस्ता भी काफ़िर
बेटी की गुड़िया भी काफ़िर
हंसना-रोना कुफ़्र का सौदा
गम काफ़िर, खुशियां भी काफ़िर

जींस भी और गिटार भी काफ़िर
टखनों से नीचे बांधो तो
अपनी यह सलवार भी काफ़िर
कला और कलाकार भी काफ़िर

जो मेरी धमकी न छापे
वह सारे अखबार भी काफ़िर
यूनिवर्सिटी के अंदर काफ़िर
डार्विन भाई का बंदर काफ़िर

फ्रायड पढ़ाने वाले काफ़िर
मार्क्स के सबसे मतवाले काफ़िर
मेले-ठेले कुफ़्र का धंधा
गाने-बाजे सारे फंदा

मंदिर में तो बुत होता है
मस्जिद का भी हाल बुरा है
कुछ मस्जिद के बाहर काफ़िर
कुछ मस्जिद में अंदर काफ़िर
मुस्लिम देश में अक्सर काफ़िर

काफ़िर काफ़िर मैं भी काफ़िर
काफ़िर काफ़िर तू भी काफ़िर!

---सलमान हैदर

11 अप्रैल 2020

15 बेहतरीन शेर !!!

1. खंजर चले किसी पे तड़पते हैं हम अमीर, सारे जहां का दर्द हमारे जिगर में है - अमीर मीनाई

2. हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम, वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता - अकबर इलाहाबादी

3- लोग टूट जाते हैं एक घर के बनाने में, तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलाने में. - बशीर बद्र

4. तू इधर उधर की न बात कर ये बता कि क़ाफ़िला क्यूँ लुटा, मुझे रहज़नों से गिला नहीं तिरी रहबरी का सवाल है ~ शहाब जाफ़री

5. ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले, ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है ~ अल्लामा इक़बाल

6. कोई क्यूँ किसी का लुभाए दिल कोई क्या किसी से लगाए दिल, वो जो बेचते थे दवा-ए-दिल वो दुकान अपनी बढ़ा गए ~ बहादुर शाह ज़फ़र

7. ऐ ‘ज़ौक़’ तकल्लुफ़ में है तकलीफ़ सरासर, आराम से वो हैं, जो तकल्लुफ़ नहीं करते..!- इब्राहिम ज़ौक़

6. आगाह अपनी मौत से कोई बशर नहीं, सामान सौ बरस का है पल की खबर नहीं - -हैरत इलाहाबादी

7. ज़िन्दगी ज़िंदादिली का नाम है, मुर्दा दिल क्या ख़ाक जिया करते हैं - नासिख लखनवी

8. करीब है यारो रोज़े-महशर, छुपेगा कुश्तों का खून क्योंकर, जो चुप रहेगी ज़ुबाने–खंजर, लहू पुकारेगा आस्तीं का -अमीर मीनाई (रोज़े-महशर = प्रलय का दिन)

9. बड़े गौर से सुन रहा था जमाना, तुम्ही सो गये दास्तां कहते कहते - साक़िब लखनवी

10. हम तालिबे-शोहरत हैं, हमें नंग से क्या काम, बदनाम अगर होंगे तो क्या नाम न होगा - नवाब मुहम्मद मुस्तफा खान शेफ़्ता

11. ये इश्क नहीं आसां, बस इतना समझ लीजै, इक आग का दरिया है और डूब के जाना है -जिगर मुरादाबादी

12. यहां लिबास की कीमत है आदमी की नहीं, मुझे गिलास बड़ा दे, शराब कम कर दे - बशीर बद्र

13. बर्बाद गुलिस्तां करने को बस एक ही उल्लू काफी था, हर शाख पे उल्लू बैठें हैं अंजाम ऐ गुलिस्तां क्या होगा - रियासत हुसैन रिजवी उर्फ ‘शौक बहराइची’

14. ज़िन्दगी तो अपने कदमो पे चलती है ‘फ़राज़’, औरों के सहारे तो जनाज़े उठा करते हैं - अहमद फ़राज़

15. कौन कहता है आसमान में सुराख नहीं हो सकता एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों ~ दुष्यंत कुमार

5 मार्च 2020

25 बेहतरीन शेर !!!

1) मैं आज ज़द पे अगर हूँ तो ख़ुश गुमान न हो, चराग़ सब के बुझेंगे हवा किसी की नहीं| --- अहमद फ़राज़

2) दुनिया के जो मज़े हैं हरगिज़ वो कम न होंगे, चर्चे यूंही रहेंगे अफ़सोस हम न होंगे --- आग़ा मोहम्मद तक़ी खान तरक़्क़ी

3) फानूस बनकर जिसकी हिफाजत हवा करे, वो शमा क्या बुझे जिसे रौशन खुदा करे

4) नशेमन पर नशेमन इस क़दर तामीर करता जा, कि बिजली गिरते गिरते आप ख़ुद बे-ज़ार हो जाए

5) इश्क़ की हर दास्ताँ में एक ही नुक्ता मिला, इश्क़ का माज़ी हुआ करता है मुस्तक़बिल नहीं

6) उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए --- बशीर बद्र

7) शह-ज़ोर अपने ज़ोर में गिरता है मिस्ल-ए-बर्क़ वो तिफ़्ल क्या गिरेगा जो घुटनों के बल चले --- मिर्ज़ा अज़ीम बेग 'अज़ीम'

8) सुर्ख़-रू होता है इंसाँ ठोकरें खाने के बाद, रंग लाती है हिना पत्थर पे पिस जाने के बाद --- सय्यद मोहम्मद मस्त कलकत्तवी

9) सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ, ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ --- ख़्वाजा मीर दर्द

10) मकतब-ए-इश्क़ का दस्तूर निराला देखा, उस को छुट्टी न मिली जिस को सबक़ याद हुआ --- मीर ताहिर अली रिज़वी

11) क़ैस जंगल में अकेला है मुझे जाने दो, ख़ूब गुज़रेगी जो मिल बैठेंगे दीवाने दो --- मियाँ दाद ख़ां सय्याह

12) मैं तमाम तारे उठा उठा के ग़रीब लोगों में बाँट दूँ, वो जो एक रात को आसमां का निज़ाम दे मिरे हाथ में --- बशीर बद्र

13) भाँप ही लेंगे इशारा सर-ए-महफ़िल जो किया, ताड़ने वाले क़यामत की नज़र रखते हैं --- लाला माधव राम जौहर

14) चल साथ कि हसरत दिल-ए-मरहूम से निकले, आशिक़ का जनाज़ा है ज़रा धूम से निकले --- फ़िदवी लाहौरी

15) मैं समझता हूँ तक़द्दुस को तमद्दुन का फ़रेब, तुम रुसूमात को ईमान बनाती क्यूँ हो --- साहिर लुधियानवी

16) हक़ अच्छा, पर इस के लिए कोई और मरे तो और अच्छा है, तुम भी क्या 'मंसूर' हो जो सूली पे चढ़ो, ख़ामोश रहो ---इब्न ऐ इंशा

17) दिल के फफूले जल उठे सीने के दाग़ से, इस घर को आग लग गई घर के चराग़ से --- महताब राय ताबां

18) उम्र तो सारी कटी इश्क़-ए-बुताँ में 'मोमिन', आख़िरी वक़्त में क्या ख़ाक मुसलमाँ होंगे ---मोमिन ख़ाँ मोमिन

19) ये जो मंदी का ज़माना है गुज़र जाने दे, फिर पता तुझको चलेगा मिरी क़ीमत क्या है --- राहत इन्दौरी

20) सब हसीं हैं जाहिदों को नापसंद, अब कोई हूर आएगी उनके लिए --- अमीर मीनाई

21) कुछ इस तरह से चल नज़ीर कारवाँ के साथ, जब तू न चल सके तो तेरी दास्तां चले ---नज़ीर अकबराबादी

22) शब को मय ख़ूब सी पी सुब्ह को तौबा कर ली, रिंद के रिंद रहे हाथ से जन्नत न गई --- जलील मानिकपूरी

23) बजा कहे जिसे आलम उसे बजा समझो, ज़बान-ए-ख़ल्क़ को नक़्क़ारा-ए-ख़ुदा समझो --- शेख़ इब्राहीम ज़ौक़

24) शर्त सलीक़ा है हर इक उम्र में, ऐब भी करने को हुनर चाहिए ---मीर तक़ी मीर

25) ईद का दिन है गले आज तो मिल ले ज़ालिम, रस्म-ए-दुनिया भी है मौक़ा भी है दस्तूर भी है --- क़मर बदायुनी

28 दिसंबर 2019

काफ़िर हूँ सर-फिरा हूँ मुझे मार दीजिए

काफ़िर हूँ सर-फिरा हूँ मुझे मार दीजिए
मैं सोचने लगा हूँ मुझे मार दीजिए
है एहतिराम-ए-हज़रत-ए-इंसान मेरा दीन
बे-दीन हो गया हूँ मुझे मार दीजिए

मैं पूछने लगा हूँ सबब अपने क़त्ल का
मैं हद से बढ़ गया हूँ मुझे मार दीजिए
करता हूँ अहल-ए-जुब्बा-ओ-दस्तार से सवाल
गुस्ताख़ हो गया हूँ मुझे मार दीजिए

ख़ुशबू से मेरा रब्त है जुगनू से मेरा काम
कितना भटक गया हूँ मुझे मार दीजिए
मा'लूम है मुझे कि बड़ा जुर्म है ये काम
मैं ख़्वाब देखता हूँ मुझे मार दीजिए

ज़ाहिद ये ज़ोहद-ओ-तक़्वा-ओ-परहेज़ की रविश
मैं ख़ूब जानता हूँ मुझे मार दीजिए
बे-दीन हूँ मगर हैं ज़माने में जितने दीन
मैं सब को मानता हूँ मुझे मार दीजिए

फिर उस के बा'द शहर में नाचेगा हू का शोर
मैं आख़िरी सदा हूँ मुझे मार दीजिए
मैं ठीक सोचता हूँ कोई हद मेरे लिए
मैं साफ़ देखता हूँ मुझे मार दीजिए

ये ज़ुल्म है कि ज़ुल्म को कहता हूँ साफ़ ज़ुल्म
क्या ज़ुल्म कर रहा हूँ मुझे मार दीजिए
ज़िंदा रहा तो करता रहूँगा हमेशा प्यार
मैं साफ़ कह रहा हूँ मुझे मार दीजिए

जो ज़ख़्म बाँटते हैं उन्हें ज़ीस्त पे है हक़
मैं फूल बाँटता हूँ मुझे मार दीजिए
बारूद का नहीं मिरा मस्लक दरूद है
मैं ख़ैर माँगता हूँ मुझे मिरा दीजिए

---अहमद फ़रहाद

22 नवंबर 2019

'शायरी मैंने ईजाद की'

काग़ज़ मराकेशों ने ईजाद किया
हुरूफ़ फ़ोनेशनों ने
शायरी मैंने ईजाद की

क़ब्र खोदने वाले ने तंदूर ईजाद किया
तंदूर पर क़ब्ज़ा करने वालों ने रोटी की पर्ची बनाई
रोटी लेने वाले ने क़तार ईजाद की
और मिलकर गाना सीखा

रोटी की क़तार में जब चींटियाँ आ कर खड़ी हो गईं
तो फ़ाक़ा ईजाद हो गया
शहतूत बेचने वाले ने रेशम का कीड़ा ईजाद किया
शायरी ने रेशम से लड़कियों के लिए लिबास बनाया
रेशम में मलबूस लड़कियों के लिए कुटनियों ने महलसरा ईजाद की
जहाँ जाकर उन्होंने रेशम के कीड़े का पता बता दिया

फ़ासले ने घोड़े के चार पाँव ईजाद किए
तेज़ रफ़तारी ने रथ बनाया
और जब शिकस्त ईजाद हुई
तो मुझे तेज़ रफ़्तार रथ के आगे लिटा दिया गया

मगर उस वक़्त तक शायरी मुहब्बत को ईजाद कर चुकी थी
मुहब्बत ने दिल ईजाद किया
दिल ने ख़ेमा और कश्तियाँ बनाईं
और दूर-दराज़ के मक़ामात तय किए

ख़्वाजासरा ने मछली पकड़ने का कांटा ईजाद किया
और सोये हुए दिल में चुभोकर भाग गया
दिल में चुभे हुए कांटे की डोर थामने के लिए
नीलामी ईजाद हुई

और
जब्र ने आख़री बोली ईजाद की
मैंने सारी शायरी बेच कर आग ख़रीदी
और जब्र का हाथ ज़ला दिया
--- अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

5 सितंबर 2019

दस्तूर

दीप जिस का महल्लात ही में जले
चंद लोगों की ख़ुशियों को ले कर चले
वो जो साए में हर मस्लहत के पले
ऐसे दस्तूर को सुब्ह-ए-बे-नूर को

मैं नहीं मानता मैं नहीं जानता
मैं भी ख़ाइफ़ नहीं तख़्ता-ए-दार से
मैं भी मंसूर हूँ कह दो अग़्यार से
क्यूँ डराते हो ज़िंदाँ की दीवार से

ज़ुल्म की बात को जहल की रात को
मैं नहीं मानता मैं नहीं जानता
फूल शाख़ों पे खिलने लगे तुम कहो
जाम रिंदों को मिलने लगे तुम कहो

चाक सीनों के सिलने लगे तुम कहो
इस खुले झूट को ज़ेहन की लूट को
मैं नहीं मानता मैं नहीं जानता
तुम ने लूटा है सदियों हमारा सुकूँ

अब न हम पर चलेगा तुम्हारा फ़ुसूँ
चारागर दर्दमंदों के बनते हो क्यूँ
तुम नहीं चारागर कोई माने मगर
मैं नहीं मानता मैं नहीं जानता
---हबीब जालिब

15 मार्च 2018

बहार आई तो

बहार आई तो जैसे यक-बार
लौट आए हैं फिर अदम से
वो ख़्वाब सारे शबाब सारे
जो तेरे होंटों पे मर-मिटे थे
जो मिट के हर बार फिर जिए थे
निखर गए हैं गुलाब सारे
जो तेरी यादों से मुश्कबू हैं
जो तेरे उश्शाक़ का लहू हैं
उबल पड़े हैं अज़ाब सारे
मलाल-ए-अहवाल-ए-दोस्ताँ भी
ख़ुमार-ए-आग़ोश-ए-मह-वशां भी
ग़ुबार-ए-ख़ातिर के बाब सारे
तिरे हमारे
सवाल सारे जवाब सारे
बहार आई तो खुल गए हैं
नए सिरे से हिसाब सारे

--- Faiz Ahmad Faiz

1 जनवरी 2018

ऐ नये साल

ऐ नये साल बता, तुझ में नयापन क्या है?
हर तरफ ख़ल्क ने क्यों शोर मचा रखा है?
रौशनी दिन की वही, तारों भरी रात वही,
आज हमको नज़र आती है हर बात वही।
आसमां बदला है अफसोस, ना बदली है जमीं,
एक हिन्दसे का बदलना कोई जिद्दत तो नहीं।
अगले बरसों की तरह होंगे करीने तेरे,
किसे मालूम नहीं बारह महीने तेरे।
जनवरी, फरवरी और मार्च में पड़ेगी सर्दी,
और अप्रैल, मई, जून में होवेगी गर्मी।
तेरे मान-दहार में कुछ खोएगा कुछ पाएगा,
अपनी मय्यत बसर करके चला जाएगा।
तू नया है तो दिखा सुबह नयी, शाम नई,
वरना इन आंखों ने देखे हैं नए साल कई।
बेसबब देते हैं क्यों लोग मुबारक बादें,
गालिबन भूल गए वक्त की कडवी यादें।
तेरी आमद से घटी उमर जहां में सभी की,
'फैज' नयी लिखी है यह नज्म निराले ढब की।

--- फैज़ अहमद 'फैज़'

खल्क – दुनिया
हिन्दसे – गणित (count, number)
जिद्दत – नयी बात (novelty)
करीने – ढ़ंग
मान-दहार – समय (time period)
ग़ालिबन – शायद
आमद – आने से

16 दिसंबर 2017

दश्त-ए-तन्हाई

दश्त-ए-तन्हाई में ऐ जान-ए-जहाँ लर्ज़ां हैं
तेरी आवाज़ के साए तिरे होंटों के सराब
दश्त-ए-तन्हाई में दूरी के ख़स ओ ख़ाक तले
खिल रहे हैं तिरे पहलू के समन और गुलाब

उठ रही है कहीं क़ुर्बत से तिरी साँस की आँच
अपनी ख़ुशबू में सुलगती हुई मद्धम मद्धम
दूर उफ़ुक़ पार चमकती हुई क़तरा क़तरा
गिर रही है तिरी दिलदार नज़र की शबनम

इस क़दर प्यार से ऐ जान-ए-जहाँ रक्खा है
दिल के रुख़्सार पे इस वक़्त तिरी याद ने हात
यूँ गुमाँ होता है गरचे है अभी सुब्ह-ए-फ़िराक़
ढल गया हिज्र का दिन आ भी गई वस्ल की रात

--- फ़ैज़ अहमद फ़ैज़